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Saturday, April 25, 2020

भारत की आर्थिक अवस्था पर कोरोना का असर एवं उसके बाद के अवसर :



कोरोना वैश्विक महामारी का भारत पर कितना कहर :
सीधी गणना करें तो भारत की अनुमानित आबादी १३५ करोड़  है जबकि विश्व की ७९५ करोड़ , मतलब भारत की आबादी विश्व की कुल आबादी की १६.९८% है| आज १४ अप्रैल रात्रि १० बजे तक कोरोना की विश्व में १९.५६ लाख संक्रमित लोग हैं जबकि भारत में १०९४१ जो इ कुल संक्रमित लोगो का .५६% है | इससे ही हम अनुमान लगा सकते हैं की भारत ने किस तरह कोरोना को फैलने से रोका है अब तक | 
यूँ ही दो तीन दिन पूर्व अमेरिका से एक मित्र से बात हो रही थी बात बात में उसने कहा यार, चाइना भारत को हरदम सब-स्टैण्डर्ड माल देता था तो देखो कोरोना भी सब-स्टैण्डर्ड भेजा और अमेरिका को हरदम छांट कर बेस्ट क्वालिटी मॉल भेजता था तो यहा कोरोना भी सबसे ताकतवर भेजा | यह तो हलके मजाक की बात है पर यह सत्य है भारत में कोरोना आबादी के हिसाब से नियंत्रित है, इसके प्रमुख दो तीन कारण है, यहाँ के खानपान में जंक फ़ूड कम है इससे यहाँ के लोगों की इम्युनिटी औरों की अपेक्षा ज्यादा है, दुसरे भारत में bcg और मलेरिया का टीकाकरण बड़े पैमाने पर होता है, यह माना जा रहा है की इन दोनों रोगों के वेक्सिन से भी कोरोना कम फ़ैल रहा है | एक चीज और हो सकती है कि इतने बड़े देश में कोरोना जांचने के नमूने कम लिए जा रहें हैं, पर इससे संक्रमित लोगों के आंकड़े कम अवश्य हो सकते हैं पर मौत के आंकड़ों को हम बड़े रूप से नहीं छुपा सकते |
तीसरी एक बात जो मुझे समझ आती है भारत में आज भी विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा प्रकृति की पूजा ज्यादा और उपेक्षा कम है | कुछ दिनों पूर्व मैंने एक पोस्ट डाली थी, की सृष्टि के निर्माण के बाद पृथ्वी रूपी कंप्यूटर में अनेकों वायरस आते रहे और जाते रहे यह वायरस इतना खतरनाक है की इसने इस कंप्यूटर का cpu ही डैमेज कर दिया, अब एक ही उपाय  है कम्पलीट शटडाउन करके कंप्यूटर से एक एक सॉफ्टवेर को अनइनस्टॉल कर क्लींजिंग करके री-इनस्टॉल करना होगा तब तक पृथ्वी को पाज पर रखना होगा, एक बात और इस कंप्यूटर की डैमेज हार्ड डिस्क यह में चेतावनी दे दी  है की आगे हमें पिरियोडीकल क्लीनिंग करनी होगी नहीं तो इसे ही हेंग होता रहेगा यह पृथ्वी रूपी कंप्यूटर |
आर्थिक असर 
इस महामारी और फिर लॉक डाउन के चलते पुरे विश्व में पहले से बिगड़ी अर्थ व्यवस्था पर भारी कुठाराघात हुआ है | इसे मात्र ३ महीने , ५ महीने या लॉक डाउन के समय की उत्पादन का नुक्सान या जीडीपी का नुक्सान नहीं समझाना चाहिए, इस महामारी से हुए खतरे से निपटने के लिए जिस स्तर पर व्यय हो रहा है, और इस लॉक डाउन के समय खास कर भारत में जो असंगठित क्षेत्र के व्यवसाय, उद्योग, और अन्य रोजगार हैं वे पहले से मार खाई नोट बंदी, GST के असर के बाद अब टूट जायेंगे | भारत का घोषित जीडीपी का ४० से ४५ % इस क्षेत्र से है और अघोषित जीडीपी ८० % इस क्षेत्र से है | पूर्व में कालाबाजारी रोकने के लिए जब नोट बंदी हुई तब मैंने एक आलेख में लिखा था कि नोट बंदी से रियल टर्म जीडीपी ऋणात्मक हो जायगा | इसका कारण था उस समय भारत का जीडीपी १३० लाख करोड़ थी  और अघोसित जीडीपी ८०% थी , (कई आर्थिक सर्वे संस्थाओ द्वारा बताया गया है यह आंकड़ा), जो की १०४ लाख करोड़ होता है, कुल जीडीपी हुआ २३४ लाख करोड़ | नोट बंदी से अघोषित आंकड़ा कम हो कर ४० से ५०% रह गया अर्थ १३०+६५= १९५ करोड़ अगर उस समय कीघोषित जीडीपी की बढ़त को सही मानते हुए रखें तो भी १३० का ८ % १०.०४ और जोड़ दें तो कुल २०५.०४ लाख करोड़ हुआ जो कि पहले के घोषित और अघोषित मिलकर २३४ से करीब ३० लाख करोड़ है और नेगेटिव ग्रोथ १० से १२ % की है, यह बेरोजगारी, उत्पादन की कमी, बाज़ार में बंद कारखानों से स्पष्ट परिलक्षित था |
कोरोना के चलते मैं मानता हूँ यह अघोषित बाज़ार टूट कर १० फीसदी ही रह जायगा इसका मुख्य कारण बाज़ार में नगद का न होना, इससे भारी बेरोजगारी तो होगी ही और भारी बाजारवाद सामने आएगा, अर्थ पैसे की ताकत से बड़े व्यापारी बाज़ार पर अपनी हुकुमत कर लेंगे | छोटे कल कारखाने बंद से हो जायेंगे | 
२०१९ के जीडीपी के जो आंकड़े हैं हम उस पर ही केन्द्रित होकर कुछ निष्कर्ष निकालें, जबकि आर्थिक अवस्था मात्र जीडीपी ही नहीं आंकी जा सकती, इसमें आयात,- निर्यात, बजट घाटा, महंगाई, आतंरिक नकद उपलब्धि इत्यादि कई पैरामीटर हैं |
परन्तु यह मान कर चलना होगा की कोरोना के बाद भारतीय अर्थ व्यवस्था चर्मराएगी | परन्तु एक देश की अर्थ व्यवस्था चरमराये और दुसरे देशं में यह ठीक रहे तो उसका नुक्सान बहुत बड़ा होता है पर कमोबेश अन्य देशों में भी यही होने वाला है केवल इतना अंतर होगा कि हमारे अघोषित असंगठित व्यवसाय पूरी तरह से समाप्त प्राय हो जायेंगे जबकि यह चीज दुसरे देशों पर कम लागु होगी, मैं विकसित या विकास शील देशो की बात कर रहा हूँ| 
अब क्षेत्र अनुसार कोरोना का इफ़ेक्ट देखें और यह मान कर चलें की इस प्रकोप से उभरने में छः महीने लग जायेंगे तो कितना नुक्सान हो सकता है एक अनुमान: २०१९ के उपलब्ध सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ो के अनुसार: 
Item  Share in % Value estimated. % Loss  Amount 
AGRICULTURE  15.87 32.37 10 3.24
MINING  2.70 5.50 15 .83
MANUFACTURING  16.83 34.33 25 8.58
ELECTRIC.GAS ETC 2.67 5.44 0 
CONSTRUCTION 7.54 15.38 20 3.06
TRADE,TRANSPORT HOTELS , ETC 18.62  37.98 30 11.39
FINANCIAL/REALEST. PROF. SERV.  20.95 42.75  10 4.27

PUBLIC.ADM DEFENCE  14.82  30.23  10 3.02
TOTAL  100  203.98  34.39 

उपरोक्त चार्ट से हम देखते हैं की कोरोना का असर अगर छः महीने रहता है तो कम से कम ३४.३९ लाख करोड़ जीडीपी १९-२० के स्तर पर होगा, हम यह मानें की नेट वृद्धि दर ५% होगी  तो २०३.९८+१०.१५= २१४.१३ होगी, कोरोना का असर इसमें से कम करें तो २१४.३९-३४.३९=१७९.७४ लाख करोड़ जीडीपी होगी जो की ऋणात्मक दर होगी और हमारी अर्थ व्यवस्था ४ वर्ष पीछे चली जायगी | 
आज छोटे उद्योग हों या बड़े उद्योग , सबकी क्या अवस्था है दो उदहारण से समझाना चाहूँगा, 
उदहारण के लिए निर्मित वस्त्र उद्योग को लें इनकी माध्यम आकर के उद्योग में मशीनों में लेकर कुल पूंजी ५० लाख होती है वहीँ मजदूरों की संख्या २०० से २५० , इनका सैलरी बिल प्रति माह ३० लाख के करीब होता है, इसके अलावा, रेंट, बिजली, ब्याज इत्यादि चालू रहते हैं , २ महीने भी इनका काम बंद रहा और इनको सब खर्च वहां करने पड़े तो इनका कारोबार तो बंद हो जायगा | छोटे ढाबा टाइप होटल, इत्यादि भी इसी हालात में हैं जहाँ अत्यधिक मजदुर कार्य करते हैं |
दूसरी स्थिति देखिये, मेरे एक परिचित का एक्सपोर्ट का कारखाना है वे करीब १००० व्यक्ति को रोजगार देते हैं, उनका सारा माल यूरोप के देशों में जाता है, कोरोना की चपेट में सारा यूरोप बेहाल है, उनपर भारी ब्याज का बोझ तो है ही, सैलरी का बोझ भी है, तकलीफ ये है की तैयार माल पड़ा  है कब यूरोप खुलेगा कब यह जायगा और इनका उत्पाद आवश्यक वास्तु भी नहीं अतः कब तक यह स्थिति रहेगी पता नहीं |
इसके अलावा अघोषित असंगठित क्षेत्र के व्यापर में बड़ा नुक्सान होगा अनुमान ही लगा सकते हैं ४० प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के कम से कम आधे रोजगार बंदी की कगार पर आ जायेंगे | और यह नुक्सान भी ३० से ४० लाख करोड़ से कम न होगा | 
कोरोना से सर्वदिक प्रभावित , मैन्युफैक्चरिंग, व्यापर, होटल, रियल एस्टेट क्षेत्र होगा ऐसा मान कर चलते हैं | 
आर्थिक संकट से उबरने के उपाय 
आयत में बचत /तेल की कम हुई कीमतों का लाभ उठायें 
रिज़र्व बैंक के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार 
हमारा विदेश राशि रिज़र्व सर्वकालीन उच्चस्तर पर है जो की हमारे इम्पोर्ट के ६ महीने से ऊपर का है (४७५ बिलियन डॉलर ) एक समय था जब हमारे पास दो दिन का भी रिज़र्व नहीं था, इसका फायदा हम लेकर हमारे हुए नुक्सान को बहुत हद तक कम कर सकते हैं, हमारे आयत का ३७% तेल में होता है और आज तेल सबसे न्यून मूल्य पर है पुरे वर्ष के तेल की आवश्यकता को हम खरीद लेते हैं तो ६ से ७ लाख करोड़ रूपये इसमें बचा सकते हैं, इसी तरह अनावश्यक आयत को रोक कर हम अपनी अर्थ व्यवस्था को सुधार सकते हैं | मैं  तो सुझाव दूंगा की हमारी जितनी विदेशी मुद्रा हमे आज्ञा दे उतना समूचा तेल इम्पोर्ट करलेना चाहिए फॉरवर्ड बुकिंग करके |
बैंक ब्याज और एन पी ए में छुट 
अगर मध्य छोटे और असंगठित उदुयोग व्यापर को बचाना है तो बहुत आवश्यक कदम उठाने पड़ेंगे,
१. ५० लाख तक के ऋण की कंपनियों के सारे ब्याज को माफ़ किया जाय, सैलरी बिल लॉक डाउन पीरियड में आधा कर दिया जाय ताकि मजदुर भी खाने लायक रहें और कारखाने भी जीवित.  
२. ऋण वापसी में डिफ़ॉल्ट हुए व्यापर की अवधि एक वर्ष तक बढा दी जाय ताकि उद्योग, व्यापार पर बैंक जोर जबरजस्ती न करे, हो सके तो लोन इन्स्ताल्ल्मेंट इत्यादि री-सेडुल कर दिए जांय | 
कृषि क्षेत्र में आमूल चुल  परिवर्तन 
कृषि क्षेत्र युगों से हमारी इनबिल्ट ताकत रही है, यह समय है इस ताकत का भरपूर फायदा उठाने का, हमारी वर्तमान कृषि व्यवस्था में दो तीन बातें हैं जो हमारी फसल को अन्य देशों के मुकाबले महंगा करती है, ये हैं प्रति एकर कम उपज, जल का रिसाव और नुक्सान, १० से १५ % तक तक उपजाऊ भूमि का, भूमि की बाढ़ बंधने में व्यय, बिखरा हुआ किसान | मैंने २०१४,१६,१८,१९ में कृषि  पर विस्तृत लेख लिख कर दिया था, हमारी आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का एक मात्र, केवल एक मात्र तरीका है किसान की प्रति व्यक्ति आय को कम से कम देश की आज की औसत आय के बराबर लाना जो की २००० डॉलर (२०१८-१९) है | आज हम सीधा जोड़ें कृषि का जीडीपी में योग दान ३२.३७ लाख करोड़ है और कृषि पर आधारित जन संख्या ५४ % है जो ७२.९ करोड़ होती है इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय होती है मात्र ४४४० रु. देश के औशत १५००० के सामने, अगर यह किसान की आय बढ़ कर १०००० भी हो जाती है तो हमारी आर्थिक अवस्था अपने आप ठीक हो जायगी और हमारी जीडीपी भी. यह तभी संभव है जब संलग्न रिपोर्ट को कार्यान्वित किया जाय|
असंगठित रोजगार को पुनर्जीवित करना 
एक अनुमान के अनुसार जितने भी लोग काम में लगे हैं उनका ४०% लोग असंगठित रोजगार में हैं और यह भी कडवा सत्य है की इनमे आधे से ज्यादा रोजगार अघोषित हैं जिन्हें हम क्रूड भाषा में कालाबाजार कहते हैं | नोट बंदी और GST के बाद सबसे ज्यादा असर इसी वर्ग को हुआ है, इस बाज़ार से तरलता बिलकुल समाप्त हो गयी है, अगर इस क्षेत्र को जीवित रखना है और इनसे जुड़े मजदूरों को जीवित रखना है तो इस क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी | इस वर्ग को नगद राशी उपलब्ध करनी होगी, इनमे से कई उद्योग, व्यापार कालेधन पर ही आश्रित हैं, क्या हम ऐसा कुछ कर सकते हैं कि कोरोना के प्रकोप से हुए बंद व्यापर को जीवनदान देने हेतु कुछ दिनों तक वह कला धन ही इनलोगों को उपलब्ध करवा दें एक प्रकार की एम्निस्टी स्कीम द्वारा |
आ अब लौट चलें ... 
यह समय आ गया है की हम १८२५ के पहले के भारत की आर्थिक निति पर लौट चलें जहां हर गाँव में कुम्हार होता था जो हर ग्रामीण के घर के बर्तन बना कर देता था, चर्मकार जुटे और अन्य सामग्री देता था, बुनकर कपडे बुनता था और बुनी हुई मलमल पुरे विश्व को निर्यात होती थी, हाथ कार्गो से कारीगिरी किये हुए कपडे, कालीन , इत्यादि विश्व के मानक थे | आज हमे पुनः अपने गानों की और चलना होगा, इससे एक तो कोरोना द्वार दिया सन्देश की प्रकृति से खिलवाड़ मत करो दूसरा शुद्ध हवा में रहो शुद्ध खाना खाओ औ अपनी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करो के सिद्धांत पर ही चलना होगा |
ब्लेस्सिंग इन डिसगायिज 
विश्व के लिए जहाँ कोरोना तबाही एवं केवल तबाही लेकर आया है मैं कोरोना को भारत के परिपेक्ष्य में एक उज्जवल भविष्य का प्रणेता देखता हूँ, एक तरफ इससे शिक्षा लेकर हम ग्रामीण , छोटे , कृषि आधारित उद्योगों को ध्यान देंगे वहीँ कुछ मौके हमे मिले हैं जिन्हें हम एनकैश करने से चुक गए तो पछतायेंगे , ये मौके हैं:
ग्रामीण प्रदुषण रहित वातावरण का निर्माण 
छोटे छोटे फार्म हाउस, रिसोर्ट और उद्योग अब समय की मांग हो गए हैं, जरा सा भी समृद्ध वर्ग है वह अब प्रदुषण मुक्त वातावरण में कम से कम सप्ताहांत बिताना चाहेगा जिनको सामर्थ्य है वे अपना फार्म हाउस बनायेंगे जिनकी कम सामर्थ्य है वे ग्रामीण परिवेश में रिसोर्ट नुमा छोटे होटलों में समय बिताना चाहेंगे , इससे ग्रामीण रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे, गाँवों का हाल भी सुधरेगा |
यह मान कर चलिए अब लोग स्वतः ग्रामीण परिवेश में लौट कर आएंगे, अतः ग्रामीण उत्थान और रोजगार के नियमों को भी सरल करना होगा |
इन्वेस्टमेंट ओप्पोरच्युनिटी 
विश्व के जितने विकसित देश हैं, अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, इंग्लॅण्ड इत्यादि आज कोरोना की सर्वाधिक मार खा रहे हैं, इनकी आर्थिक अवस्था जो पहले से ही दबाब में थी अब चरमरा गयी है, इनके यहाँ बेरोजगारी अप्रत्याशित रूप से बढ़ेगी, इसका असर वहाँ रह रहे भारतियों पर भी पड़ेगा उनको पुनः भारत आना पड़ सकता है, इन शिक्षित वर्ग भारत आकर सकारात्मक योगदान दे सकता है , भारत के पुनर्निर्माण में |
चीन से फैला यह विषाणु चीन के प्रति विश्व के अधिकांश देशों में विस्वसनीयता समाप्त कर चूका है, चीन में जितने भी निवेश हैं वे पाश्चात्य देशों के ज्यादा हैं यहाँ तक मित्र देश जापान और रूस भी सतर्क हो गए हैं | वे सब देश चीन से बाहर निवेश के लिए उपयुक्त जगह खोजेंगे, आज निवेश के लिए जो मुख्य बातें वे देखते हैं:
१. सस्ता मजदुर; बंगलादेश, पाकिस्तान, अन्य अफ़्रीकी देश सब जगह मजदुर सस्ते मिल जायेंगे पर अगर हम स्किल्ड, ट्रेंड, वेल मेनरड कार्य बल देंगे तो उनकी प्रथमिकता हम होंगे |
२. बिजली : यह अच्छी बात है आज हम बिजली के मामले में अब स्वालम्बी हैं, बस हमारी बिजली विश्व की बिजली की दर पर उपलब्ध करनी होगी |
३. आधारभूत ढांचा: सबसे मुख्य बात है इन्फ्रा स्ट्रक्चर , इसमें सड़कें जो १०० टन की लारियां ले कर चल सकें , हमारे पोर्ट जो लाख लाख टन के जहाज को ३ से ४ दिन में खाली कर सकें और पुनः लोड कर सके,  इत्यादि मूलभुत सुविधाएँ |
४.  जमीन : पोर्ट के नजदीक हमें कम से कम १२ से १५ इंटीग्रेटेड टाउनशिप विकसित करनी होगी जहाँ विदेशी निवेश के लिए १०-१० हज़ार हक्टेर भूमि विकसित करके रखनी होगी जिससे प्रस्तावित निवेशक को तुरंत हम आबंटित कर सकें | 
५. आवास, व अन्य सुविधाएँ: चीन में विदेशी निवेशकों को जाने का मुख्य कारण उपरोक्त सुविधाओं के आलावा रहन सहन की सुविधा , व्यापार में कम से कम सरकारी हस्तक्षेप और सबसे आवश्यक कारखाना लगाने लायक वातावरण बनाना है, 
६. निवेशकों को यह भी विश्वास मिलना होगा की सरकार बदलने से उनके उद्योग पर कोई असर नहीं होगा, भारतके मामले में सबसे बड़ी कमी पिछले कई सालों तक यह रही है |
मैं समझाता हूँ कोरोना से उपन्न हुई परिस्थिति में जहाँ हमे बहुत नुक्सान हुआ है और होगा वहीँ हमे यह अवसर भी प्राप्त हुआ है और हमे इसे एनकैश करना चाहिए |

संलग्न : 
कृषि सम्बन्धी सुझाव :
एक परिकल्पना जो शायद प्रथम दृष्टया असंभव प्रतीत हो, परन्तु  कार्यान्वयन करने पर देश की दशा एवं दिशा बदल देगी |
• हर घर को हर हाथ को काम मिलेगा 
• हर घर को बिजली मिलेगी 
• हर घर को पेय जल मिलेगा
• हर घर में शौचालय की व्यवस्था होगी 
• गाँव साफ़ सुथरा होगा 
• प्रगति ही प्रगति दिखेगी
• खुशहाली होगी किसानों को आत्महत्या की नौबत नहीं आयेगी 
• गाँव में ही भारत बसता है यह सत्य होगा 
• हर दो या तीन पंचायत समूह जिसे मिलकर कुल आबादी २५००/३००० लोगों की हो एवं भूमि ५००  एकड़ कम से कम वहाँ यह योजना लागु हो |
• किसान को उसकी भूमि उसे बहुत प्रिय होती है वह किसी भी कीमत पर यह सहकारिता में भूमि देने को राजी नहीं होगा, ऐसे में उसकी भूमि को पट्टे पर लेना होगा और वार्षिक किराया भूमि की गुन्वात्तानुसार ३ वर्गों में की जाय | आयुर भूमि वाले किसान को कम से कम उतनी राशी भूमि किराये पर निश्चित मिले ताकि उसके आत्महत्या के कोई कारण न रहे |
• पुरे क्षेत्र की जमीन को एक चक्र कर दिया जाय I
• जितने भी भूमि धारक हैं उन्हें उनके क्षेत्र के अनुपात से कृषि कार्य में दैनिक मजदूरी पर रखा जाय, इस से उनको एक निश्चित आय तय हो जायगी, 
• कृषि पूर्ण होने पर जो भी मुनाफा होगा उसे शयेर धारकों में उसी अनुपात से संस्था का खर्च काट कर बाँट दिया जाय|
• जमीन  के चारों तरफ पशुओं के लिए चारा लगाया जाय, जो जमींन बंजर है उसमे बायोमास हेतु झाड लगाया जाय I
• पशु गोबर से वर्मीकम्पोस्ट (जैविक खाद ) का उत्पादन किया जाय I
• जब कृषि हेतु जमीन बड़ी होगी तो बाड़ें आदि निकल जायगी तो व्यवस्थित कृषि होगी एवं बड़े क्षेत्र में आधुनिक उपकरणों से कृषि होगी तो फसल भी अच्छी होगी एवं ज्यादा होगी, क्षेत्र के चारों तरफ सीमा रेखा पर चारा की फसल के साथ फूल सब्जियां लगाई जाय ताकि बिना अतिरिक्त खर्च के यह आमदनी अलग हो |
• हर कार्य करने वाले को जिम्मेदारी दी जाय की वह क्या करेगा, जैसे ट्रेक्टर चलाना, पंप चलाना, थ्रेसर चलाना, बाड़ पर चारा उगाना, फल-फुल-सब्जियां उगाना, वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन देखना बायोमास के लिए झाड का कलेक्शन, कटाई, फिर बिजली का उत्पादन इत्यादि इत्यादि बहुत कार्य हो जायेंगे जिसमे सब युवा लग सकते हैं , अपनी शिक्षा एवं कला के अनुसार |
• जब इतना कार्य होगा तो सब उपकरणों की देखरेख हेतु छोटा मोटा मशीन शॉप भी होगा I
• हस्त कला का विकास भी संगठित क्षेत्र में होगा
• दुग्ध का व्यापार भी फ़ैल सकता है
• अपना विद्यालय होगा
• छोटा चिकत्सालय होगा
• गाँव की साफ़-सफाई सुरक्षा का प्रबंधन होगा
• एक कम्युनिटी सेंटर जहां दिन भर कार्य करके लोग मनोरंजन कर सकें, 
• दुकाने, हाट की व्यवस्था हो
• इन सब व्यवस्थाओं में जो खर्च आने वाला है वह ग्राम की संस्था देगी एवं सरकार जो अभी ग्राम विकास के लिए कर रही है वह खर्च इसमें जायगा, मनरेगा में होने वाली निधि भी इसमें जायगी क्योंकि अलग से मनरेगा की आवश्कता नहीं सभी युवक कार्य में लग जायेंगे I
• आपात में जब चाहे वह अपनी जमीन बेच सकता है, क्या तो संस्था ले ले या संस्था का कोई भी सदस्य, इसके अलावा बेचने हेतु उसे संस्था से स्वीकृति लेनी होगी, चूँकि यह कृषि क्षेत्र में होगी अतः यह जमीन केवल कृषि के लिए ही बिकेगी |
• सब कार्यों को लोगों की नियुक्ति क्या तो दैनिक आधार पर होगी या कार्य के दर पर, इससे व्यक्ति अपने को स्वतंत्र समझ सकेगा
• फसल ख़राब हुई, कमाई नहीं हुई ऐसी संभावना में उसे कम से कम दैनिक मजदूरी अवश्य मिलेगी, भूखे रहने की या ख़ुदकुशी करने की नौबत नहीं आयेगी I ((संगठित रहने से खाद या बीज या उपकरण थोक भाव में खरीदने से सस्ते होंगे एवं ठगाई नहीं होगी I फसल का बीमा होगा अतः वे सब निर्भय रहेंगेI
• संगठित रहने से उपरोक्त सब सुविधा मिल सकेगी वरना नहीं I 
• फसल का बिक्रिय मूल्य भी अधिक मिलेगा क्यूंकि मोल करने की ताकत बढ़ेगी )) ये सुझाव सरकार ने माने हैं, पर जब तक सुझाव टोतलिटी में नहीं माने जायेंगे तब तक पूर्ण सुधार नहीं होगा |
४. कांटेक्ट फार्मिंग : 
भारत सरकार ने भी इसे मान लिया है की यह किसानों की समृद्धि का बहुत सटीक उपाय है, आज भारत में कांटेक्ट फार्मिंग मात्र २% ही है, इसे ज्यादा से ज्यादा लागु करना चाहिए| इसमें वे उद्योग घराने जो खाद्य पदार्थ निर्माण करते हैं वे किसानो से अनुबंध करते हैं की किसान को बिक्री की चिंता नही वे सब सामान खरीद लेंगे, मूल्य एक्चुअल कास्ट में निर्धारित मुनाफा जोड़ कर निर्धारित होता है | किसान को न तो बीज की, न बिजली की, न खाद की चिंता करनी है सब अनुबंध के तहत वे कंपनी देती है , किसान को केवल भूमि से अन्न या अन्य वस्तुएं उत्पादित करनी होती है | पतंजलि, हिंदुस्तान लीवर, ITC,  पेप्सी, इत्यादि कई कंपनियां इस प्रकार खेती करवा रही हैं जो मुख्यतः पंजाब और हरियाणा में हैं, आज वे किसान समृद्ध भी हैं | आना वाला समय जब भारत में बाज़ार खोजने फ़ूड प्रोसेसिंग उद्योग लगाये तो यह आवश्यक शर्त लगा देनी चाहिए की उद्योग को आस पास के,  उनकी कच्चेमॉल के आवश्यकता अनुसार, किसानों को कांटेक्ट फार्मिंग में जोड़ना होगा |

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